मेरा इंडियन ऑइल का छोटा सा सफर: अनेकता में एकता की मिसाल

मेरा इंडियन ऑइल का छोटा सा सफर: अनेकता में एकता की मिसाल

3 दिसम्बर 2014 को मुझे  इंडियन ऑइल के विशाल परिवार का हिस्सा बनने का सुनहरा अवसर मिला
28 साल दिल्ली में गुजारने के बाद पहली दफा किसी और शहर में रहने का मौका मिला
एक और अपनी पुरानी नौकरी, अपने माता पिता एवं दोस्तों से दूर होने का दुख था
पर दूसरी ही और अपने जीवन साथी के संग एक नयी ज़िंदगी शुरू करने का जोश एवं उत्साह था
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चंडीगढ़ शहर का नाम बहुत सुना था, भारत के सबसे सुंदर शहर में से एक है, इस बात का अनुमान था
पर हूँ तोह आखिर दिल्लीवाली, जिस शहर में पली बड़ी, पढ़ाई की, उसे छोडने से मन थोड़ा थोड़ा बेचैन था.
17 दिसम्बर, अपने जनम दिन से एक दिन पहले मैंने पंजाब राज्य कार्यालय में कार्यभार संभाला
पहले ही दिन लोगों के मित्रतापूर्ण स्वभाव, उनके प्रेम एवं स्नेह में एक अपनापन सा महसूस हुआ, मेरी आशंकाओं को दूर कर डाला.
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धीरे धीरे जहाँ एक और में इंडियन ऑइल के रंग में ढलने लगी,
वही दूसरी और इस शहर की खूबसूरती एवं रहन-सहन की तरफ आकर्षित होने लगी
इंडियन ऑइल में भारत के विभिन्न राज्यों से आए अफसरों का अदभुत मिश्रण था
और हमारे कार्यालय में ही अनेकता में एकता का गजब उदाहरण मेरे समक्ष था

लगभग दो वर्ष के यहाँ अनुभव में मुझे किस्मत से चंद मित्रों का अनंदमयी साथ मिला
जिसने मेरे इन दो वर्षों के लम्हों को और भी यादगार एवं अनमोल बना डाला
जहाँ एक और दक्षिण भारत से आए एक लड़के ने पहली बार एक हिन्दी भाषी राज्य में कार्यभार संभाला, और हिन्दी सीखने का कठिन प्रयास किआ,
वहीं दूसरी ओर लेह लदाख की कठोर लोकेशन से आए दो मित्रों के अनुभवों एवं साहस ने मुझे आशावादी होना सिखाया
जहाँ एक और बिहार से आए और पोलैंड में Japanese पढ़ाये एक लड़के ने चंडीगढ़ में हिन्दी विभाग का पद संभाला,
वहीं दूसरी और नाम एवं स्वभाव से शांत पर हरयाणा के गबरू जवान ने हमारे समूह में एक नया रंग डाला
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अलग अलग धर्मों, समुदाय,परिस्थितियों से होने से बावजूद, इस सब के परे, हम सब साथ खाते, वक्त बिताते, एक दूसरे के सुख दुख में साथ देते हैं
पंजाब राज्य कार्यालय में अनेकता में एकता का प्रतिरूप होने का शायद हम छोटा सा उदाहरण कह सकते हैं.

हम सब की मात्र भाषा भले ही अलग हो पर हम सब को जोड़ती, एक सूत्र में बाँधती है भाषा हिन्दी,
सरल, सुलभ जिस भाषा के माध्यम से  हम सब अपने अपने विचार अपने भाव खुले मन se  व्यक्त करते हैं, ऐसी है ये भाषा हिन्दी
अंग्रेज़ी चाहे दुनिया में प्रचलित हो, नौकरी एवं प्रगति के लिए अनिवार्य ज़रूर समझी जाती हो,
परंतु जो हमारे, दिल की, हमारे मन की भाषा थी , है और रहेगी वह है हमारी अपनी हिन्दी. 
हमारी अपनी हिन्दी.
हमारी अपनी हिन्दी.*************************************************************************


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