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Showing posts from May, 2013

आखिर कब तक .........

आखिर कब तक ......... यह बिन मौसम होने वाली   बरसात , और    मौसम के बदलते मिजाज़   यह पेड़ों का यूँ गिरना एवं कटना  ,  ऊपर से यह नदियों का निरंतर   स्तर गिरना   यह सड़कों पर अनगिनत   गाड़ियों एवं अन्य वाहनों    का बढ़ता धुआं   और जगह जगह कूड़ाघर , उनपर   भिनभिनाती हुए    मक्खी   मच्छरों    का बसा डेरा   इस दूषित एवं    प्रदूषित   हवा में बढ़ते हुए    किटानुं ,  बिमारियों का घर बन रहा है   हमारा प्यारा    पर्यावरण   जिस दुनिया को भगवान् ने इतना खूबसूरत बनाया   इस मानव जाती के सुखी जीवन    के लिए फल , फूल अन्न से संसार को भर डाला   आज वही इन्सान अपने इर्द गिर्द की दुनिया की कदर करना भूल गया है   इतनी हसीं वादियों समुंद जंगलों    जीव जंतुओं को नष्ट होते चुप चाप खड़ा है   कब तक , आखिर कब तक हम मनुष्य आँखें मूंदे रहेंगे .. अपने पर्यावरण अपने संसार का यूँ विनाश होते देखते रहेंगे   अगर जल्द ही हमनें अपने पर्यावरण को न बचाया , कोई कदम न उठाया   अफ़सोस हम और  हमारी   आने वाली पीड़ियाँ ..जी ना    सकेंगे ...

मंदिरा"

मंदिरा    मैं , ८०   साल की   मंदिरा" , अकेली बेबस इस छोटे से कमरे से दुनिया को देखती हूँ , बीस साल पहले मेरी दुनिया रंगीन थी अलग थी ख़ुशी से भरी थी   जीवन मे  उमंग थी हर सुबह    जीने की एक नयी उम्मीद थी , यह वही    कमरा है , यह वह घर है जहाँ  मैंने अपनी   ज़िन्दगी के सबसे हसीं पल बिताये   इस घर में मेरा हँसता    खेलता परिवार था , मेरी ज़िन्दगी में सब कुछ था , सम्पूर्ण  थी , पर आज यह    कमरा मेरे लिए जेल के सामान है , एक काल कोठरी के समान    है वही  पलंगवही कुर्सी और  खिड़की जिससे मैं हर बदलते मौसम को देखती हूँ दिन और रात इसी बिस्तर पर बैठी  महीने और साल   गिनती रहती हूँ . एक वक़्त था जब मेरे साथ सब थे , मेरे बच्चे , मेरी दुनिया मेरे संग थे ,  और आज मेरे पास कोई नहीं , इस बूढी दादी/नानी के लिए किसी के पास दो पल नहीं   जिन बच्चों को मैंने लाड से पाला    जिनके लिए अपना सब दे डाला    आज वही    मुझ पर चिल्लाते हैं , जिन पोते पोतियों को अपने हाथ से खिलाया आज वही     मेरी बीमारी का मज़ाक उड़ाते हैं   होली हो या दिवाली शादी हो या कोई और अवसर मैं